सब ज़रुरत के रिश्ते हैं रिश्तों की ज़रुरत कहाँ किस को है
सब की परवाह मुझे ही है, मेरी परवाह कहाँ किस को है
है दुनिया में लगाने को गले बहुत लोग मेरे पास
क्या किसी को गला लगाने की फुर्सत मुझे भी है |
सब की परवाह मुझे ही है, मेरी परवाह कहाँ किस को है
है दुनिया में लगाने को गले बहुत लोग मेरे पास
क्या किसी को गला लगाने की फुर्सत मुझे भी है |
मंसूर